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About the Book: अपना देश "वसुधैव कुटुम्बकम" नामक सनातन धर्म के मूल आदर्श सिद्धांत में विश्वास रखने वाला देश है इसका मतलब धरती ही परिवार है एक का सुख - दुःख दूसरे का सुख-दुःख होना चाहिए सिद्धांतत यह बहुत अच्छी बात है लेकिन व्यवहारत उधर अपने ही देश में समय समय पर "एकला चलो रे" का भी तो आवाहन हुआ है, जिसका अर्थ है कि आप अपने मंजिल की तरफ अपने ढंग से आगे, अकेले ही बढ़ते रहें इसी "आगे और अकेले" बढ़ने के जोश-जुनून ने समीर और मीरा का घर उजाड़ना शुरू कर दिया है समीर और मीरा ही नहीं आज ढेर सारे लोगों को बेघर होना पड़ रहा है मीरा आधुनिक दौर की युवती है और उसे अपने कैरियर को किसी भी हाल में दांव पर नहीं…mehr

Produktbeschreibung
About the Book: अपना देश "वसुधैव कुटुम्बकम" नामक सनातन धर्म के मूल आदर्श सिद्धांत में विश्वास रखने वाला देश है इसका मतलब धरती ही परिवार है एक का सुख - दुःख दूसरे का सुख-दुःख होना चाहिए सिद्धांतत यह बहुत अच्छी बात है लेकिन व्यवहारत उधर अपने ही देश में समय समय पर "एकला चलो रे" का भी तो आवाहन हुआ है, जिसका अर्थ है कि आप अपने मंजिल की तरफ अपने ढंग से आगे, अकेले ही बढ़ते रहें इसी "आगे और अकेले" बढ़ने के जोश-जुनून ने समीर और मीरा का घर उजाड़ना शुरू कर दिया है समीर और मीरा ही नहीं आज ढेर सारे लोगों को बेघर होना पड़ रहा है मीरा आधुनिक दौर की युवती है और उसे अपने कैरियर को किसी भी हाल में दांव पर नहीं लगाना है समीर है कि उसे घर बसाने के लिए एक ऐसी गृहिणी चाहिए जो अपने कैरियर और दाम्पत्य दोनों पर खरी उतरे मीरा दाम्पत्य जीवन में सेक्स सम्बन्ध बनाने से इसीलिए बचती फिरती है कि कहीं बाल बच्चों के चक्कर में उसका कैरियर बनाने का सपना ही न धूमिल हो जाय उधर नरेंदर, मीरा का चालाक सहपाठी और कैरियर गाइड, मीरा का मददगार है हालांकि वह भी मीरा की शारीरिक निकटता चाहता है दोनों इसी कशमकश में एकाधिक बार साहचर्य का सुख भी उठा चुके हैं लेकिन उन दोनों के विवाह करके घर बसाने में दिक्कतें हैं कुछ ऐसे ही ताने बाने को लेकर "स्टोरीमिरर" के लिटरेरी जनरल श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी द्वारा रचा गया सामाजिक और पारिवारिक आइना दिखाता उपन्यास है - "उजड़ा हुआ दयार !"
Autorenporträt
About the Author: पहली सितम्बर उन्नीस सौ तिरपन को गोरखपुर (उ.प्र.) के दक्षिणान्चल के एक गाँव विश्वनाथपुर (सरया तिवारी) तहसील खजनी में प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार में प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी का जन्म हुआ। दी०द०उपा० गोरखपुर विश्वविद्यालय से कला और विधि स्नातक की डिग्री लेकर उन्होंने कुछ दिनों तक वकालत भी की। तीस अप्रैल उन्नीस सौ सतहत्तर से इकतीस अगस्त दो हज़ार तेरह तक उन्होंने आकाशवाणी के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दी हैं। लेखन का बीज उनमें बाल्यावस्था से पड़ गया था जो अवसर पाकर क्रमश अंकुरित, पल्लवित, पुष्पित और फलित होता हुआ जीवन की सांझ तक साथ-साथ चल रहा है। वर्ष 2002 में देश के प्रतिष्ठित "टाटा" संस्थान ने अखिल भारतीय स्तर पर सम्पन्न खुली लेखन प्रतियोगिता में इन्हें प्रथम पुरस्कार के रूप में टाटा इंडिका गाड़ी उपहार में दी। अब तक इनकी पांच पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। वर्तमान में पत्र -पत्रिकाओं, सोशल मीडिया, ब्लॉग और पुस्तक लेखन में सक्रिय हैं।