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आप सभी की तरह मैं भी हर दिन अपनी तलाश में हूँ, कभी शाम के धुंधलके में, कभी रात के सन्नाटे में, कभी उषा की लालिमा में और कभी दोपहर की उमस में, अपने आप उभर आये कुछ भावों को शब्दों में पिरोते-पिरोते कविताओं का एक संग्रह बनता चला गया। इस काव्य-संग्रह की हर कविता किसी न किसी निजी अनुभव से प्रेरित है, और संसार में एक जैसा अनुभव कई लोगों को होता है, इसलिए आशा है कि आप इन मनोभावों से जुड़ पाएंगे, पिछले कुछ वर्षों में सारे विश्व ने जो संकट झेले हैं उसमें कविता लिखने के तो कई मौके बन सकते हैं, किन्तु इस उथल-पुथल, वैश्विक महामारी, और तृतीय विश्व-युद्ध की आहट के बीच कविता पढ़ना हमारे मानव होने के भाव को…mehr

Produktbeschreibung
आप सभी की तरह मैं भी हर दिन अपनी तलाश में हूँ, कभी शाम के धुंधलके में, कभी रात के सन्नाटे में, कभी उषा की लालिमा में और कभी दोपहर की उमस में, अपने आप उभर आये कुछ भावों को शब्दों में पिरोते-पिरोते कविताओं का एक संग्रह बनता चला गया। इस काव्य-संग्रह की हर कविता किसी न किसी निजी अनुभव से प्रेरित है, और संसार में एक जैसा अनुभव कई लोगों को होता है, इसलिए आशा है कि आप इन मनोभावों से जुड़ पाएंगे, पिछले कुछ वर्षों में सारे विश्व ने जो संकट झेले हैं उसमें कविता लिखने के तो कई मौके बन सकते हैं, किन्तु इस उथल-पुथल, वैश्विक महामारी, और तृतीय विश्व-युद्ध की आहट के बीच कविता पढ़ना हमारे मानव होने के भाव को जगाये रखता है, यदि भाव से भाव और दिल से दिल का संपर्क हो सके तो यही मेरी लेखनी की सफलता होगी।