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  • Format: ePub

इस किताब के कमरे में बंद हैं कहानियाँ जिन्हें बहना पसंद हैं और ठहरना उससे भी ज़्यादा। सभी कहानियाँ सामयिक हैं। मैं जब जब भोगती थी जंगलों को, बाघों को, उनके भय को, पक्षियों और उनके कलरव को, कभी अकेले, कभी एक साथ, तब कहीं ये कहानियाँ भी अपना आकार ले रही होतीं थीं । मुझे मालूम नहीं कि किस शैली, किस विमर्श में रखूँ इन कहानियों को, जब हर कहानी का ढांचा जो भी हो, जैसा भी हो, उसकी आत्मा में इंसान और इंसानियत को क़ैद करने की कोशिश है बस! ये किसी विशेष भौगोलिक सीमाओं में बंधी कल्पनाओं या उनमें घटी घटनाओं का लेखा जोखा भी नहीं है। एक यात्रा है जो अचीन्ही दिशाओं की तरफ ज़रुर ले जाती है। ये कहानियाँ जिनकी जड़ें नहीं, ये कुछ करे न करे, आपको सींचेंगी अवश्य।…mehr

  • Geräte: eReader
  • mit Kopierschutz
  • eBook Hilfe
  • Größe: 0.36MB
  • FamilySharing(5)
Produktbeschreibung
इस किताब के कमरे में बंद हैं कहानियाँ जिन्हें बहना पसंद हैं और ठहरना उससे भी ज़्यादा। सभी कहानियाँ सामयिक हैं। मैं जब जब भोगती थी जंगलों को, बाघों को, उनके भय को, पक्षियों और उनके कलरव को, कभी अकेले, कभी एक साथ, तब कहीं ये कहानियाँ भी अपना आकार ले रही होतीं थीं । मुझे मालूम नहीं कि किस शैली, किस विमर्श में रखूँ इन कहानियों को, जब हर कहानी का ढांचा जो भी हो, जैसा भी हो, उसकी आत्मा में इंसान और इंसानियत को क़ैद करने की कोशिश है बस! ये किसी विशेष भौगोलिक सीमाओं में बंधी कल्पनाओं या उनमें घटी घटनाओं का लेखा जोखा भी नहीं है। एक यात्रा है जो अचीन्ही दिशाओं की तरफ ज़रुर ले जाती है। ये कहानियाँ जिनकी जड़ें नहीं, ये कुछ करे न करे, आपको सींचेंगी अवश्य।


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