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जॉन ड्राईडेन ने अपनी कृति "अन एसे अव ड्रमेटिक पोइजी" (1668) में नाट्य विधा में दुखांत व सुखांत के मिश्रण को यह ...
जॉन ड्राईडेन ने अपनी कृति "अन एसे अव ड्रमेटिक पोइजी" (1668) में नाट्य विधा में दुखांत व सुखांत के मिश्रण को यह कहते हुए जायज ठहराया है कि यह जीवन की वास्तविकता के अधिक करीब है। जीवन की इन्ही विविधताओं को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक काव्य के माध्यम से जीवन के आदि से अंत तक की यात्रा का जश्न मनाने का प्रयास है। भक्ति, श्रृंगार, वीर, हास्य तथा करुण आदि रस व भावों से भरी कवितायें आपको जीवन की चारों ऋतुओं का आभास करायेंगी। हमारी भाषा व संस्कृति की सुन्दरता के साथ-साथ प्रस्तुत काव्य-संग्रह आपको कुछ सामाजिक चुनौतियों की ओर भी मुखातिब करेगा। काव्य का यह सफ़र आप सभी के साथ न केवल शब्द वरन भावनाओं को भी साझा करने का प्रयास है।
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