
Chaar Adhaya aur Malanch
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इसी अवधि में जब सुरेश किसी प्रांत के एक बड़े शहर में रह रहे थे, एला उनके घर आई। उसके रूप, गुण और विद्या ने काका के मन में गर्व जगा दिया। वे अपने ऊपर वालों, साथियों तथा देशी-विलायती मिलने वालों एवं परिचितों के सामने अनेक बहानों से एला क...
इसी अवधि में जब सुरेश किसी प्रांत के एक बड़े शहर में रह रहे थे, एला उनके घर आई। उसके रूप, गुण और विद्या ने काका के मन में गर्व जगा दिया। वे अपने ऊपर वालों, साथियों तथा देशी-विलायती मिलने वालों एवं परिचितों के सामने अनेक बहानों से एला को प्रकट करने के लिए बेचैन हो उठे। एला की स्त्री-बुद्धि को यह समझते देर न लगी कि इसका फल अच्छा नहीं होगा। माधवी झूठे आराम का बहाना करके बार-बार कहने लगीं, "मेरी जान बची। विलायती समाज परंपरा का बोझ मुझ पर क्यों लादना बेकार ही। मुझमें उसके लिए न विद्या है, न बुद्धि।" यह रंग-ढंग देख एला ने अपने चारों ओर एक ज़नान-ख़ाना-सा खड़ा कर लिया। उसने बड़े उत्साह से सुरेश की लड़की सुरमा को पढ़ाने का भार अपने ऊपर ले लिया और शेष समय को अपने एक 'थीसिस' लिखने में लगाया, जिसका विषय था, 'बांग्ला मंगल-काव्य और चॉसर के काव्य की तुलना', इस बात को लेकर सुरेश भी बड़े उत्साहित हुए और इस समाचार को उन्होंने चारों ओर फैला दिया। माधवी ने मुँह बिचकाकर कहा, "ज़्यादा शेखी अच्छी नहीं।"