
अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह
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अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह (सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक प्रतिरोध और भक्ति की लोकगाथा) हरियाणवी रागणी केवल एक गायन शैली नहीं, बल्कि जनजीवन की आत्मा, संस्कृति की धड़कन और सामाजिक संवाद का माध्यम है। यह संग्रह हरियाणा की मिट्टी से...
अविकावनी हरयाणवी रागणी संग्रह (सांस्कृतिक चेतना, सामाजिक प्रतिरोध और भक्ति की लोकगाथा) हरियाणवी रागणी केवल एक गायन शैली नहीं, बल्कि जनजीवन की आत्मा, संस्कृति की धड़कन और सामाजिक संवाद का माध्यम है। यह संग्रह हरियाणा की मिट्टी से उपजी उस लोकध्वनि को समकालीन चेतना, भक्ति भाव, और सामाजिक विवेक से जोड़ता है। लेखक श्री आनन्द कुमार आशोधिया ने हर रचना के साथ उसका भाव-वक्तव्य प्रस्तुत कर यह सुनिश्चित किया है कि पाठक रचना के मूल भाव को समझें - न कि केवल अपने अर्थ थोपें। इस संग्रह में भक्ति, प्रतिरोध, स्मृति, नारी गरिमा और सांस्कृतिक पुनरुद्धार एक साथ बहते हैं। "दक्ष प्रजापति जयंती" जैसी रचना धार्मिक इतिहास को लोकभाषा में प्रतिष्ठित करती है, जबकि "किस्सा शाही लकड़हारा" में स्त्री की सहभागिता और आत्मबल की पुकार है। "बम लहरी" जैसे भजनों में शिवभक्ति और लोक उत्सव की ऊर्जा है, जो जन मंचों पर श्रद्धा और चेतना को जागृत करती है। समकालीन विडंबनाओं पर तीखा व्यंग्य भी इस संग्रह की विशेषता है। "इंटरनेट मोबाइल खतरा" और "बदल गया इन्सान" जैसी रचनाएँ आधुनिकता के नाम पर फैलते अराजकता, धार्मिक पाखंड और नैतिक पतन पर करारा प्रहार करती हैं। ये रचनाएँ केवल आलोचना नहीं, बल्कि संस्कृति की रक्षा की पुकार हैं। श्री आनन्द कुमार आशोधिया की लेखनी भाव, विचार और संवेदना का संगम है। उनका लेखन हरियाणवी लोक साहित्य को सामाजिक उत्तरदायित्व, आध्यात्मिक गहराई और सांस्कृतिक गरिमा से जोड़ता है। वे उन विरले रचनाकारों में से हैं जो लेखनी को साधना मानते हैं - और संस्कृति को अपनी आत्मा।