
कथक योग
शालीना की नृत्यशाला
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िकर्त की मस्कराहट, हर्षोल्लास एव उमग में झमते नाचते पश-पर्ियों को देख कर हमारे पविजों ने नत्य को जन्म र्दया होगा। यह वह यग था जब मनष्य कदरत के बीच रहता था। जगल ही उनकी र्जदगी थी। आज हम भले ही उन्हें आर्दवासी या वनवासी कहें लेर्कन हम ...
िकर्त की मस्कराहट, हर्षोल्लास एव उमग में झमते नाचते पश-पर्ियों को देख कर हमारे पविजों ने नत्य को जन्म र्दया होगा। यह वह यग था जब मनष्य कदरत के बीच रहता था। जगल ही उनकी र्जदगी थी। आज हम भले ही उन्हें आर्दवासी या वनवासी कहें लेर्कन हम जो कछ भी हैं उन्हीं की के द्वारा स ्थार्पत मान्यताओ और र्वज्ञान के कारण है। आयािवति में चार ऋतओ का सगम धरती पर अनोखा िाकर्तक उपहार है। वसत, ग्रीष्म, वर्षाि और शरद ऋत यहा एक खशनमा वातावरण िदान करती हैं। दर्नया में यह चारों ऋतए एक साथ एक भ-भाग पर भारत के अर्तररक्त और कहीं भी नहीं आती। कहीं ग्रीष्म ऋत के साथ शरद ऋत है और इन दोनों में वर्षाि होती है। तो कहीं शरद ऋत का िभाव अर्धक है और ग्रीष्म ऋत अशकार्लक है। दर्नया में वसत ऋत भी अशकार्लक है र्कन्त भारत भर्म पर चारों ऋतए पणिकार्लक हैं। यही कारण है र्क यहा ईश्वर का वास है। देवताओ की कमिभर्म और जीवत होती जीवनशैली को यही से सारी दर्नया में फैलाया गया। इसी जीवनशैली का एक अग है नत्य।